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बारिश

>> Wednesday 31 March 2010


बिखरे वजूद के



अक्स को समेट


लरजती हुई


साँसों से


घायल से जज़्बात लिए


एक छटपटाती


सी नज़्म


तैर गयी है


मेरी सूनी


आँखों में ,


इस बार


बारिश नहीं हुई
 
 
 
 
 

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कल्पना का इन्द्रधनुष

>> Wednesday 24 March 2010


कल्पना के



इन्द्रधनुष को


किसी क्षितिज की


दरकार नहीं


ये तो


उग आते हैं


मन के


आँगन के


किसी कोने में ....


http://blog4varta.blogspot.com/2010/03/4_25.html

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हुनर

>> Saturday 20 March 2010


उदासी सी मन पर



यूँ ही उतर आई


किसी ने कहा कि


ये भी एक हुनर है .




जो सीख लें हुनर तो


बुराई क्या है


हर हुनर को सीखने का


हौसला होना चाहिए
 
 
 
 
 

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नमक

>> Wednesday 17 March 2010



समझौतों ने कभी भी
मरहम नहीं लगाया
मन की
दरार पर



ये तो
वो नमक है
जो लोग लगा देते हैं
अक्सर जख्म पर ,

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वजूद

>> Thursday 11 March 2010



वजूद के टुकड़े

क्या बांटेंगी

उदास शामें

और ग़मज़दा रातें




जिसने

टुकड़े टुकड़े

जोड़ कर ही

बनाया हो

वजूद अपना .




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ख़्वाबों की कश्ती

>> Sunday 7 March 2010



ख़्वाबों को कश्ती में


डाल कर

उतार दिया है

इस जहाँ के

दरिया में

मंझधार से बचे

तो बेड़ा पार लगे.

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शबनम .

>> Friday 5 March 2010


समंदर छलका



जो आँखों का


तो,


बह आई एक लहर


मन के साहिल की


तपती रेत पर


पड़ गयी हो


जैसे शबनम .
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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